जब-जब दर्द का बादल छाया,
जब गम का साया लहराया,
जब आंसू पलकों तक आया,
जब ये तनहा दिल घबराया,
हमने दिल को यह समझाया,
कि दिल आखिर तू क्यों रोता है,
दुनिया में यूं ही होता है।
ये जो गहरे सन्नाटें हैं,
वक्त ने सबको ही बाटें हैं।
थोड़ा गम है सबका किस्सा,
थोड़ी धूप है सबका हिस्सा।
आंखें तेरी बेकार ही नम है,
हर पल एक नया मौसम है।
क्यों तू ऐसे पल खोता है,
दिल आखिर तू क्यों रोता है।
संदीप कुमार
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